Poets
Poetry
Books
Log in
Poets
Poetry
Books
Poetry
/
और और छबि
और और छबि
Nirala
#
Hindi
और और छबि रे यह, नूतन भी कवि, रे यह और और छबि! समझ तो सही जब भी यह नहीं गगन वह मही नहीं, बादल वह नहीं जहाँ छिपा हुआ पवि, रे यह और और छबि। यज्ञ है यहाँ, जैसा देखा पहले होता अथवा सुना; किन्तु नहीं पहले की, यहाँ कहीं हवि, रे यह और और छबि!
Share
Read later
Copy
Last edited by
Chhotaladka
February 24, 2017
Added by
Chhotaladka
January 14, 2017
Similar item:
www.kavitakosh.org
Views:
12,234,002
Feedback
Read Next
Loading suggestions...
Show more
Cancel
Log in