मरण को जिसने वरा है
मरण को जिसने वरा है उसी का जीवन भरा है परा भी उसकी, उसी के अंक सत्य यशोधरा है । सुकृत के जल से विसिंचित कल्प-किंचित विश्व-उपवन, उसी की निस्तन्द्र चितवन चयन करने को हरा है । गिरीपताक उपत्यका पर हरित तृण से घिरी तन्वी जो खड़ी है वह उसी की पुष्पभरणा अप्सरा है । जब हुआ वंचित जगत में स्नेह से, आमर्ष के क्षण, स्पर्श देती है किरण जो, उसी की कोमल करा है ।

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