घन तम से आवृत धरणी है
घन तम से आवृत धरणी है; तुमुल तरंगों की तरणी है। मन्दिर में बन्दी हैं चारण, चिघर रहे हैं वन में वारण, रोता है बालक निष्कारण, विना-सरण-सारण भरणी है। शत संहत आवर्त-विवर्तों जल पछाड़ खाता है पर्तों, उठते हैं पहाड़, फिर गर्तों धसते हैं, मारण-रजनी है। जीर्ण-शीर्ण होकर जीती है, जीवन में रहकर रीती है, मन की पावनता पीती है, ऐसी यह अकाम सरणी है।

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