अपराजिता
हारीं नहीं, देख, आँखें-- परी नागरी की; नभ कर गंई पार पाखें परी नागरी की। तिल नीलिमा को रहे स्नेह से भर जगकर नई ज्योति उतरी धरा पर, रँग से भरी हैं, हरी हो उठीं हर तरु की तरुण-तान शाखें; परी नागरी की-- हारीं नहीं, देख, आँखें।

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