कैसे हुई हार तेरी निराकर,
कैसे हुई हार तेरी निराकार, गगन के तारकों बन्द हैं कुल द्वार? दुर्ग दुर्घर्ष यह तोड़ता है कौन? प्रश्न के पत्र, उत्तर प्रकृति है मौन; पवन इंगित कर रहा है--निकल पार। सलिल की ऊर्मियों हथेली मारकर सरिता तुझे कह रही है कि कारगर बिपत से वारकर जब पकड़ पतवार। क्षिति के चले सीत कहते विनतभाव-- जीवन बिना अन्न के है विपन्नाव; कैसे दुसह द्वार से करे निर्वार?

Read Next