मेरी छबि ला दो
मेरी छबि उर-उर में ला दो! मेरे नयनों से ये सपने समझा दो! जिस स्वर से भरे नवल नीरद, हुए प्राण पावन गा हुआ हृदय भी गदगद, जिस स्वर-वर्षा ने भर दिये सरित-सर-सागर, मेरी यह धरा धन्य हुई भरा नीलाम्बर, वह स्वर शर्मद उनके कण्ठों में गा दो! जिस गति से नयन-नयन मिलते, खिलते हैं हृदय, कमल के दल-के-दल हिलते, जिस गति की सहज सुमति जगा जन्म-मृत्यु-विरति लाती है जीवन से जीवन की परमारति, चरण-नयन-हृदय-वचन को तुम सिखला दो!

Read Next