गीत-गाये हैं मधुर स्वर,
किरण-कर वीणा नवलतर।
ताकते हैं लोग, आये
कहाँ तुम, कैसे सुहाये,
अनन्तर अन्तर समाये,
कठिन छिपकर, सहज खुलकर।
कान्त है कान्तार दुर्मिल,
सुघर स्वर से अनिल ऊर्मिल,
मीड़ से शत-मोह घूर्मिल,
तार से तारक, कलाधर।
छा गया जैसे अखिल भव,
द्रुमों से जागा यथा दव,
ॠतु-कुसुम से गन्ध, आसव,
उषा से जैसे कनक-कर।