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कई बार आकर्ण तान धनु लक्ष्य साध कर तीर छोड़ता हूँ मैं- कोई गिरता नहीं, किन्तु सद्य: उपलब्धि मुझे होती है :...

अलस कालिन्दी-कि काँपी टेरी वंशी की नदी के पार। कौन दूभर भार अपने-आप...

भोर अगर थोड़ा और अलसाया रहे, मन पर छाया रहे...

दूर सागर पार पराए देश की अनजानी राहें। पर शीलवान तरुओं की गुरु, उदार...

अब भी यही सच है कि अभी एक गीत मुझे और लिखना है। अभी उस के बोल नहीं हैं मेरे पास पर एकाएक कभी लगता है...

आप ने दस वर्ष हमें और दिये बड़ी आप ने अनुकम्पा की। हम नत-शिर हैं। हम में तो आस्था है : कृतज्ञ होते हमें डर नहीं लगता कि उखड़ न जावें कहीं।...

मैंने देखा एक बूँद सहसा उछली सागर के झाग से रँगी गई क्षण भर...

जिस अतीत को मैं भूल गया हूँ वह अतीत नहीं है क्यों कि वह वर्तमान अतीत नहीं है। जिस भविष्य से मुझे कोई अपेक्षा नहीं वह...

रहने दे इन को निर्जल ये प्यासी भी जी लेंगी- युग-युग में स्नेह-ललायित पर पीड़ा भी पी लेंगी! अपनी वेदना मिटा लूँ? उन का वरदान अमर है! जी अपना हलका कर लूँ? वह उन की स्मृति का घर है!...

आया है शरद विलायती क्या बना है! रंगीन फतुही काली जुर्राबें, हवा में खुनकी मिज़ाज में तुनकी दिल में चाहे जाती धूप की कसक...

दाँतों में रह गयी कथा ज्यों प्राणों में व्यथा। क्या स्रोत, कब कहाँ उद्गम- हम भूल गये पूछना...

चिड़िया को जितने भी नाम दिये थे सब झूठे पड़ गये स्वयं जब बोली चिड़िया नहीं कहा कुछ मैं ने :...

कितनी जल्दी तुम उझकीं झिझकीं ओट हो गईं, नन्दा !...

सब ओर बिछे थे नीरव छाया के जाल घनेरे जब किसी स्वप्न-जागृति में मैं रुका पास आ तेरे। मैं ने सहसा यह जाना तू है अबला असहाया : तेरी सहायता के हित अपने को तत्पर पाया।...

आज चिन्तामय हृदय है, प्राण मेरे थक गये हैं- बाट तेरी जोहते ये नैन भी तो थक गये हैं; निबल आकुल हृदय में नैराश्य एक समा गया है वेदना का क्षितिज मेरा आँसुओं से छा गया है।...

प्रिये, तनिक बाहर तो आओ, तुम्हें सान्ध्य-तारा दिखलाऊँ! रुष्ट प्रतीची के दीवट पर करुण प्रणय का दीप जला है- लिये अलक्षित अनुनय-अंजलि किसे मनाने आज चला है? प्रिये, इधर तो देखो, तुम से इस का उत्तर पाऊँ!...

मुझे देख कर नयन तुम्हारे मानो किंचित् खिल जाते हैं, मौन अनुग्रह से भर कर वे अधर तनिक-से हिल जाते हैं। तुम हो बहुत दूर, मेरा तन अपने काम लगा रहता है- फिर भी सहसा अनजाने में मन दोनों के मिल जाते हैं,...

मैं भी एक प्रवाह में हूँ- लेकिन मेरा रहस्यवाद ईश्वर की ओर उन्मुख नहीं है, मैं उस असीम शक्ति से सम्बन्ध जोडऩा चाहता हूँ- अभिभूत होना चाहता हूँ-...

गगन में मेघ घिर आये। तुम्हारी याद स्मृति के पिंजड़े में बाँध कर मैं ने नहीं रक्खी, तुम्हारे स्नेह को भरना पुरानी कुप्पियों में स्वत्व की...

मेरे प्राण स्वयं राखी-से प्रतिक्षण तुझको रहते घेरे पर उनके ही संरक्षक हैं अथक स्नेह के बन्धन तेरे। भूल गये हम कौन कौन है, कौन किसे भेजे अब राखी- अपनी अचिर अभिन्न एकता की बस यही भूल हो साखी!...

मैं ने जो नहीं कहा वह मेरा अपना रहा रहस्य रहा : अपनी इस निधि, अपने संयम पर...

प्रिय, तुम हार-हार कर जीते! जागा सोया प्यार सिहर कर, प्राण-अघ्र्य से आँखें भर-भर। स्पर्श तुम्हारे से जीवित हैं, दिन वे कब के बीते! कैसे मिलन-विरह के बन्धन? क्यों यह पीड़ा का आवाहन?...

तुम चलने से पहले जान लेना चाहते हो कि हम जाना कहाँ चाहते हैं।...

मुड़ी डगर मैं ठिठक गया। वन-झरने की धार साल के पत्ते पर से...

राह बदलती नहीं-प्यार ही सहसा मर जाता है, संगी बुरे नहीं तुम-यदि नि:संग हमारा नाता है स्वयंसिद्ध है बिछी हुई यह जीवन की हरियाली- जब तक हम मत बुझें सोच कर-'वह पड़ाव आता है!'...

बाबू ने कहा : विदेश जाना तो और भी करना सो करना गौ-मांस मत खाना। अन्तिम पद निषेध का था,...

आये तो तुम थोड़ा बरस तो गये! तरसे इन नयनों को आह! बड़े हौले...

जीवन-पट की धुँधली लिपि को व्यथा-नीर से धो चलें। कहाँ फूल-फल, पत्ते-पल्लव? दावानल में राख हुए सब, उजड़े-से मानस-कानन में नया बीज हम बो चलें। इच्छा का है इधर रजत-पथ उधर हमारा कंटकमय पथ,...

मैं तेरा कवि! ओ तट-परिमित उच्छल वीचि-विलास! प्राणों में कुछ है अबाध-तनु को बाँधे हैं पाश! मैं तेरा कवि! ओ सन्ध्या की तम-घिरती द्युति कोर! मेरे दुर्बल प्राण-तन्तु को व्यथा रही झकझोर!...

यह कविता मैं ने उस दिन वहाँ आपको सुनायी थी किस दिन, कहाँ, यह मुझे स्वयं भी याद नहीं।...

ऊषा अनागता, पर प्राची में जगमग तारा एकाकी; चेत उठा है शिथिल समीरण : मैं अनिमिष हो देख रहा हूँ यह रचना भैरव छविमान! दूर कहीं पर, रेल कूकती, पीपल में परभृता हूकती,...

'अकेली न जैयो राधे जमुना के तीर' 'उस पार चलो ना! कितना अच्छा है नरसल का झुरमुट!' अनमना भी सुन सका मैं गूँजते से तप्त अन्त:स्वर तुम्हारे तरल कूजन में।...

किसी को शब्द हैं कंकड़ : कूट लो, पीस लो, छान लो, डिबियों में डाल दो थोड़ी-सी सुगन्ध दे के कभी किसी मेले के रेले में कुंकुम के नाम पर निकाल दो।...

बना दे चितेरे, मेरे लिए एक चित्र बना दे। पहले सागर आँक : विस्तीर्ण प्रगाढ़ नीला, ...

ओ तू पगली आलोक-किरण, सूअर की खोली के कर्दम पर बार-बार चमकी, पर साधक की कुटिया को वज्र-अछूता अन्धकार में छोड़ गयी?...

हवा हिमन्ती सन्नाती है चीड़ में, सहमे पंछी चिहुँक उठे हैं नीड़ में, दर्द गीत में रुँधा रहा-बह निकला गल कर मींड में- तुम हो मेरे अन्तर में पर मैं खोया हूँ भीड़ में! सिहर-सिहर झरते पत्ते पतझार के,...

मेरे उर ने शिशिर-हृदय से सीखा करना प्यार- इसी व्यथा से रोता रहता अन्तर बारम्बार! कठिन-कुहर-प्रच्छन्न प्राण में पावक-दाह प्रसुप्त- पतझर की नीरसता में चिर-नव-यौवन-भंडार।...

एक समुद्र, एक हवा, एक नाव, एक आकांक्षा, एक याद : इन्हीं के लाये मैं यहाँ आया। यानी तुम्हारे।...

नीला नभ, छितराये बादल, दूर कहीं निर्झर का मर्मर चीड़ों की ऊध्र्वंग भुजाएँ भटका-सा पड़कुलिया का स्वर, संगी एक पार्वती बाला, आगे पर्वत की पगडंडी : इस अबाध में मैं होऊँ बस बढ़ते ही जाने का बन्दी!...

यह व्यथा की बात कोई कहे या न कहे। सपने अपने झर जाने दो, झुलसाती लू को आने दो पर उस अक्षोभ्य तक केवल मलय समीर बहे। यह बिदा का गीत कोई सुने या सुने।...