बंदी और विश्व
मैं तेरा कवि! ओ तट-परिमित उच्छल वीचि-विलास! प्राणों में कुछ है अबाध-तनु को बाँधे हैं पाश! मैं तेरा कवि! ओ सन्ध्या की तम-घिरती द्युति कोर! मेरे दुर्बल प्राण-तन्तु को व्यथा रही झकझोर! मैं तेरा कवि! ओ निशि-विष-प्याले के छलके रिक्त! परवशता के दाह-नीर से मेरा मन अभिषिक्त! मैं तेरा कवि! ओ प्रात:तारे के नेत्र, हताश! मेरा भी तो हृत-वैभव से पूर्ण सकल आकाश! मै तेरा कवि! ओ कारा की बद्ध अबाध विकलते! उर पीड़ा-निधि, पर आँखों से आँसू नहीं निकलते!

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