मेरे उर ने शिशिर-हृदय से सीखा करना प्यार
मेरे उर ने शिशिर-हृदय से सीखा करना प्यार- इसी व्यथा से रोता रहता अन्तर बारम्बार! कठिन-कुहर-प्रच्छन्न प्राण में पावक-दाह प्रसुप्त- पतझर की नीरसता में चिर-नव-यौवन-भंडार। धवल मौन में अस्फुट-मधु-वैभव के रंग असंख्य- तदपि अकेला शिशिर, काल का पीड़ा-कोषागार। मेरे प्रेम-दिवस भी मेरे जीवन के कटु भार- मेरे उर ने शिशिर-हृदय से करना सीखा प्यार!

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