पराई राहें
दूर सागर पार पराए देश की अनजानी राहें। पर शीलवान तरुओं की गुरु, उदार पहचानी हुई छाँहें। छनी हुई धूप की सुनहली कनी को बीन, तिनके की लघु अनी मनके-सी बींध, गूँथ, फेरती सुमिरनी, पूछ बैठी : कहाँ, पर कहाँ वे ममतामयी बाँहें ?

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