Poets
Poetry
Books
Log in
Poets
Poetry
Books
Poetry
/
प्रिय, तुम हार-हार कर जीते
प्रिय, तुम हार-हार कर जीते
अज्ञेय
#
Hindi
प्रिय, तुम हार-हार कर जीते! जागा सोया प्यार सिहर कर, प्राण-अघ्र्य से आँखें भर-भर। स्पर्श तुम्हारे से जीवित हैं, दिन वे कब के बीते! कैसे मिलन-विरह के बन्धन? क्यों यह पीड़ा का आवाहन? कोष कभी जो साथ भरे थे हो सकते क्या रीते! प्रिय, तुम हार-हार कर जीते!
Share
Read later
Copy
Last edited by
Chhotaladka
August 22, 2017
Added by
Chhotaladka
March 31, 2017
Similar item:
www.kavitakosh.org
Views:
12,234,002
Feedback
Read Next
Loading suggestions...
Show more
Cancel
Log in