नई कविता : एक संभाव्य भूमिका
आप ने दस वर्ष हमें और दिये बड़ी आप ने अनुकम्पा की। हम नत-शिर हैं। हम में तो आस्था है : कृतज्ञ होते हमें डर नहीं लगता कि उखड़ न जावें कहीं। दस वर्ष और! पूरी एक पीढ़ी! कौन सत्य अविकल रूप में जी सका है अधिक? अवश्य आप हँस लें : हँस कर देखें फिर साक्ष्य इतिहास का जिस की दुहाई आप देते हैं। बुद्ध के महाभिनिष्क्रमण को कितने हुए थे दिन थेर महासभा जब जुटी यह खोजने कि सत्य तथागत का कौन-कौन मत-सम्प्रदायों में बिला गया! और ईसा-(जिन का कि एक पट्ट शिष्य ने मरने से कुछ क्षण पूर्व ही था कर दिया प्रत्याख्यान) जिस मनुपुत्र के लिए थे शूल पर चढ़े- उसे जब होश हुआ सत्य उन का खोजने का तब कोई चारा ही बचा न था इस के सिवा कि वह खड्गहस्त दसियों शताब्दियों तक अपने पड़ोसियों के गले काटता चले! ('प्यार करो अपने पड़ोसियों को आत्मवत्'-कहा था मसीहा ने!) 'सत्य क्या है?' बेसिनी में पानी मँगा लीजिए : सूली का सुना के हुक्म हाथ धोये जाएँगे! बुद्ध : ईसा : दूर हैं। जिस का थपेड़ा स्वयं हम को न लगे वह कैसा इतिहास है? ठीक है। आप का जो 'गाँधीयन' सत्य है उस को क्या यही सात-आठ वर्ष पहले गाँधी पहचानते थे? तुलना नहीं है यह। हम को चर्राया नहीं शौ क मसीहाई का। सत्य का सुरभि-पूत स्पर्श हमें मिल जाय क्षण-भर : एक क्षण उस के आलोक से सम्पृक्त हो विभोर हम हो सकें- और हम जीना नहीं चाहते : हमारे पाये सत्य के मसीहा तो हमारे मरते ही, बन्धु, आप बन जाएँगे! दस वर्ष! दस वर्ष और! वह बहुत है। हमें किसी कल्पित अमरता का मोह नहीं। आज के विविक्त अद्वितीय इस क्षण को पूरा हम जी लें, पी लें, आत्मसात् कर लें- उस की विविक्त अद्वितीयता आप को, कमपि को, कखग को अपनी-सी पहचनवा सकें, रसमय कर के दिखा सकें- शाश्वत हमारे लिए वही है। अजर अमर है वेदितव्य अक्षर है। एक क्षण : क्षण में प्रवहमान व्याप्त सम्पूर्णता। इस से कदापि बड़ा नहीं था महाम्बुधि जो पिया था अगस्त्य ने। एक क्षण। होने का, अस्तित्व का अजस्र अद्वितीय क्षण! होने के सत्य का, सत्य के साक्षात् का, साक्षात् के क्षण का- क्षण के अखंड पारावार का आज हम आचमन करते हैं। और मसीहाई? संकल्प हम उस का करते हैं आप को : 'जम्बूद्वीपे भरतखंडे अमुक शर्मणा मया।'

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