कोई कहे या न कहे
यह व्यथा की बात कोई कहे या न कहे। सपने अपने झर जाने दो, झुलसाती लू को आने दो पर उस अक्षोभ्य तक केवल मलय समीर बहे। यह बिदा का गीत कोई सुने या सुने। मेरा पथ अगम अँधेरा हो, अनुभव का कटु फल मेरा हो वह अक्षत केवल स्मृति के फूल चुने!

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