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देह-दंड मैं भोग रहा हूँ, फिर भी, अपने...

बैलगाड़ी राज्य की चल नहीं सकती प्रगति से दौड़ती। एक ही तो बैल है! दूसरा अब भी अलग है-दूर है!!...

देह मिली हो पानी-ही-पानी की तुमको! इसी देह से तरुण तरंगित घोड़ों को तुम...

पाटल कपोल के अरुणोदय के, मुखर-मौन की पंखुरियों को खोले,...

आपका चित्र जहाँ भी जिसने लगाया आपका आशीष उसने पाया जिंदगी का दौर...

वह चिड़िया जो- चोंच मार कर दूध-भरे जुंडी के दाने रुचि से, रस से खा लेती है...

वह न रहा मेरे पास जिसे होना चाहिए मेरे पास वह न रहा आपके पास जिसे होना चाहिए आपके पास वह न रहा समाज के पास जिसे होना चाहिए...

आपने खाए हमारे गट्टे हैं हमारे खाए फल बहुत खट्टे हैं...

उनको महल-मकानी हमको छप्पर-छानी उनको...

हँस रहा है उधर धूप में खड़ा पूरा पहाड़ खोल कर मोटे बड़े होंठ । और चट्टानी जबड़े ।...

यह- दैहिक, दोलन-उत्तोलन महिलाओं का...

जब जो मैंने कहा न बनकर कहा...

तुम्हारे पाँव देवताओं के पाँव हैं जो जमीन पर नहीं पड़ते हम वंदना करते हैं तुम्हारी...

देवताओं के देश में देवता, अब, यहाँ-वहाँ कहीं नहीं ...

सब कुछ देखा, फिर-फिर देखा, जो देखा वह देखा देखा। देखे में कुछ नया न देखा,...

अब, सच के पास से भी पास पहुँच तो गए आप,...

मैं समय की धार में धँसकर खड़ा हूँ।...

दिन का दर्पण नित्य दिखाता दिनकर, संप्रेषित करता दर्पण से,...

गोकुल सेना में भरती हो लड़ने को रंगून गया था लेकिन अपनी प्रिय राधा को अपने आने की आशा में...

पात पुरातन लेकर पतझर चला गया प्रिय बसंत अब आया दंड-देहधारी विटपों का...

अनर्थ हो गया है अर्थ की अभ्यर्थना में मनुष्य खो गया है मनुष्य की जल्पना में...

भोगने दो मुझे लय न पा सकी, विलाप-व्याकुल कविता की यातना। भोगने दो मुझे...

बाहों में बंधी वह पुलक से पराजित हुई वह चुम्बन-चकित जय में जी उठी वह...

मैदान में अकुंठित खड़ा नीम का निर्भ्रांत गोलवा पेड़...

निशा- निशाकर का आमोदित अंक मिला। दिवा-...

मेरा फूल नहीं खिलता है, सूने और अकेलेपन में, सूनेपन के जर्जर वन में, बंध्या धरती के आँगन में।...

हम पात्र हैं किसी के रख दिए गए यहाँ-- ख़ाली, कभी कुछ भरने के लिए;...

आतंकित करता है मुझे मेरा सम्मान। इसी वक्त तो परास्त करती हैं मुझे मेरी कमजोरियां। कांपता हूं मैं, यश की विभूति से विभूषित,...

देखा, पास पहुँचकर देखा ‘हेमहार’ तरु अमलतास को। मुझको आए याद ‘निराला’!...

लंदन गए-लौट आए। बोलौ! आजादी लाए? नकली मिली या कि असली मिली है? कितनी दलाली में कितनी मिली है?...

जन के पथ की खबर खरी हो, साँची हो, बानी-बोली...

जलाशय के सौन्दर्य की बंद हथेलियाँ आज जब मृणाल पर खुलीं...

मिल मालिक का बड़ा पेट है बड़े पेट में बड़ी भूख है बड़ी भूख में बड़ा जोर है बड़े जोर में जुलुम घोर है...

चोली फटी सरस सरसों की नीचे गिरा फागुनी लहंगा, ऊपर उड़ी चुनरिया नीली, देखो हुई पहाड़ी विवसन...

आज भी आई कल भी आई रेल बराबर सब दिन आई! लेकिन दिल्ली से आजादी...

घर फूँक तमाशा देखती है आक्रोश की भीड़;-- हाल में अभी...

न पत्थर चूमता है पत्थर को न पत्थर बाँधता है बाँहों में पत्थर को न पत्थर करता है मर्दन पत्थर का...

संसद हो गई सर्वोपरि संविधान हो गया संशोधित धर्म निरपेक्ष हो गया लोकतंत्र...

क्षण के संरक्षण के सनकी नहीं देखते आगे पीछे रहते हैं क्षण की छतुरी के नीचे कण का जीवन जी के...

न्याय से लड़ा अन्याय एक से दूसरी दूसरी से तीसरी...