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नेता निगाह का कच्चा है नासमझ देश का बच्चा है...

सब से जुदा न आदमी है आदमी न आदमी है ख़ुदा...

अविराम बज रही हैं ब्राजन स्वरों से सघोष, काँसे की सरोष घंटियाँ अविराम हताहत हो रहा है तमांध अमोघ ओजस्वी स्वरों से हारता।...

किसी ने कहा : स्वर्ग यहीं है मैंने कहा : हाँ-- क्योंकि आदमी मर चुका है और अब स्वर्ग यहीं है।...

चंदेलों की कला-प्रेम की देन-- देवताओं के मन्दिर बने हुए हैं अब भी अनिंद्य जो खड़े हुए हैं खजुराहो में, याद दिलाते हैं हम को उस गए समय की जब पुरुषों ने उमड़-उमड़ कर--...

सब कुछ प्राप्य है उसे जो अप्राप्य है तुम्हें फिर भी वह दरिद्र है मनुष्यता के अभाव में...

सिर से पैर तक फूल-फूल हो गई उसकी देह, नाचते-नाचते हवा का बसंती नाच।...

मौत को पढ़ रही है ज़िन्दगी जो मर गई है अमरीकी अनाज पा कर कर्ज़ का जाज बजा कर...

वायु चली अविजेय सैन्य की हलचल दौड़ी नीड़ों से निकले प्रभात के जागे पंछी, पंख पसारे फैल गई ललकार लहर की,...

हाथी-सा बलवान, जहाजी हाथों वाला और हुआ सूरज-सा इंसान, तरेरी आँखों वाला और हुआ एक हथौड़े वाला घर में और हुआ माता रही विचार अंधेरा हरने वाला और हुआ...

मौन चल रहा है वंचक चांदनी में तुम्हारे चम्पक सौन्दर्य के साथ...

मैंने खोला बन्द कोठरी के किवाड़ का पल्ला, बरसों बाद, सुनी मैंने जड़ लकड़ी की चर्र-मर्र सोचा था मैंने कोई निकलेगा महान वहाँ भीतर से...

वह कवि था, कवियों में रवि था मन से पंकज, तन से पवि था वह अपने युग का युगपति था गति के पार गई वह गति था...

देर हो गई है दिवाकर को गए अदृश्य में विवर्ण हो गया है सवर्ण तट पर खड़ा पूर्व का ऎरावत निकट आ ही गया है बरौनियों से बेधता...

अथाह का नील अब हो गया है कुपित अशान्त के अस्तित्व के आक्रोश से व्यथित कि तैरने लगे हैं हवा में तरंगित सर्प...

रंग नहीं रथ दौड़ते हैं रंगीन फूलों के सांध्य गगन में । देखो--बस--देखो !...

सार्वजनिक भीड़ में भी विभाजित हूँ मैं तुम्हें पाने के लिए, अविभाजित एकाकीपन में...

न टूटो तुम बस झुको यों कि चूम लो मिट्टी और फिर उठो।...

मुरदों की ज़मीन पर गड़े हैं सलीब कि उन्हें उखाड़ रही हैं हवाएँ।...

पीली धोती नीली चोली सिर से लटकी लम्बी बेनी तुम हो सरसों...

जब कलम ने चोट मारी तब खुली वह खोट सारी तब लगे तुम वार करने झूठ से संहार करने...

न धूप को है न और को है अपना एहसास मगर है...

हरी घास का बल्लम गड़ा भूमि पर सजग खड़ा है छह अंगुल से नहीं बड़ा है...

बद्दल-पंखी चुप-चुप मौसम; फुहियों के फाहों की नम-नम...

अब तक सुबह नहीं हुई है मेरी घड़ी में लेकिन सूर्य चढ़ गया है सिर पर नेता की घड़ी में।...

बहुत दिन हो गए हैं तुम्हें दर्पण को देखे न आओगी क्या अब उसमें सदेह सामने। तुम्हारी प्रतीक्षा में है वह...

मालवा में गीत मेरे गूँज जाएँ, मैं यहाँ पर गीत गाऊँ, वह वहाँ पर घनघनाएँ, मालवा में आग का डंका बजाएँ।...

सेब में घुसा चाकू देश में घुसा हाथ विदेश का ख़ूनी...

नदी से दूर एक सिन्धु है समतल सिन्धु से दूर एक अन्य प्रेत है नभ का, हे भगवान, मेरी आँख के रोग को सहारा दो कहीं ऎसा न हो कि असीम दिक और प्रलम्ब पुरातन...

बादल ने मार दी बरछी, गाँव को, और फिर चला गया;...

अब भी है कोई चिड़िया जो सिसक रही है नील गगन के पंखों में नील सिंधु के पानी में; मैं उस चिड़िया की सिसकन से सिहर रहा हूँ...

अब यह जो बन रही हैं सड़कें यहाँ-वहाँ बनती नहीं कि बिगड़ जाती हैं जहाँ-तहाँ...

बादल पंख बने पर्वत के, फड़-फड़ फड़के, घने हुए घहराए,...

आयें दिन जैसे भी आयें, लायें दुख जैसे भी लायें। वे सब मेरे पाहुन होंगे,...

अंडे पर अंडा और अंडे पर अंडा देती है...

गाँव हो या शहर बचा कोई नहीं दगहिल खराब होने से तलातली पतन से।...

विकास इस दिशा में हुआ है; अब बहुत आदमी बे-सिर पैर का हुआ है पीठ के नीचे धूल पड़ी है...

मेरे मन की नदी सदी के बृहत सूर्य से चमक रही है मेरे पौरुष का यह पानी दृढ़ पहाड़ से टकराता है टूट-टूट जाता है फिर भी बूंद-बूंद से घहराता है...

गंध में उड़ रहा गुलाब निर्बन्ध बने रहने के लिए प्राण से मिल कर...

ऎसा भी हुआ है कभी कि सूर्य मरा हुआ पैदा हुआ है सवेरे और आदमियों ने फिर भी अंधकार को ललकारा है...