यह-दैहिक
यह- दैहिक, दोलन-उत्तोलन महिलाओं का लोक-मंच पर;- आदिम, जैविक, इंद्रियबोधी यह उत्सर्जन;- विषयातुर अंगों की थिरकन, लगातार पदचाई चंचल गमनागमनी;- घूम-घुमौवल, झूम-झुमौवल, आवेशी उद्रेकी नर्तन, मुझे न भाया- मैंने इसमें युग यथार्थ का द्वन्द्व और संघर्ष न पाया। मैंने इसमें कर्मशील कर्तव्य-परायण लोक-मंगलाचार न पाया। मैंने इसमें जो भी पाया वह तो केवल महिलाओं के हाड़-मांस का अर्पण और समर्पण पाया, नहीं आत्म आमोदन पाया, नहीं चेतना का संप्रेषण पाया।

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