देह-दण्ड
देह-दंड मैं भोग रहा हूँ, फिर भी, अपने पुष्ट प्राण से, स्वागत करता हूँ- कहता हूँ; आएँ, बैठें, मुझे सुनाएँ- नई-नई अपनी रचनाएँ, मुझे रिझाएँ, देह-दंड की व्यथा मिटाएँ।

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