पात पुरातन लेकर
पात पुरातन लेकर पतझर चला गया प्रिय बसंत अब आया दंड-देहधारी विटपों का दल किसलय से हरसाया। फूला, महका, लोक-तंत्र को भाया। कविता-कोकिल ने छंदों में गाया।

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