मैदान में
मैदान में अकुंठित खड़ा नीम का निर्भ्रांत गोलवा पेड़ वनस्पतीय बोध से चहचहाता है पत्तियाँ लहराता है झूम-झूम जाने को गाने को बुलाता है जीने की लालसा जगाता और बलि बलि जाता है।

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