जब जो मैंने कहा
जब जो मैंने कहा न बनकर कहा न बिककर कहा; तह में पहुँचकर, बहाव में बहते-बहते देर तक बहा, तब खोजकर जो गहा, शब्दार्थ में गूँथकर, रचनाओं के रूप में कहा- चेतन सृष्टि का कर्त्ता हुआ अमानवीय बोध का हर्त्ता हुआ। व्यक्तित्व जो मैंने गढ़ा, जीने की लड़ाई में गढ़ा, आगे ही आगे बढ़कर गढ़ा, सच के साथ जुड़कर गढ़ा; न भीरु हुआ मैं न भयाक्रांत हुआ मैं; द्वन्द्व में निर्द्वन्द्व जिया मैं, प्राणों से पुष्ट हुआ मैं।

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