वह न रहा मेरे पास
वह न रहा मेरे पास जिसे होना चाहिए मेरे पास वह न रहा आपके पास जिसे होना चाहिए आपके पास वह न रहा समाज के पास जिसे होना चाहिए समाज के पास बात ही ऐसी हुई कि मैं-आप और समाज ज्ञान गुन-गौरव से, गरिमा से वंचित होते-होते, अनिवार्यताओं से विमुख होते चले गए- अनावश्यकताओं से चुम्बकित होते चले गए, समता के स्थान पर विषमता के फेर में पड़े-पड़े चरित्र की चाल में हम सब तीनों- डगर-डगर डगमगाते चलते चले गए, न्याय के नाम पर अन्याय की उपलब्धियाँ उपार्जित करते चले गए, भरण-पोषण के लिए तुच्छातितुच्छ अपहरण की अवतारणा करते चले गए, गुनाह के प्रवाह में प्रवाहित होते-होते गुमराह होते-होते चले गए अस्तित्व में अनस्तित्व का अभियान ही अभियान आयोजित करते चले गए।

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