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मैं बैठा था पथ पर, तुम आये चढ़ रथ पर। हँसे किरण फूट पड़ी, टूटी जुड़ गई कड़ी, ...

अल्प दिन हुए, भक्तों ने रामकृष्ण के चरण छुए। जगी साधना जन-जन में भारत की नवाराधना।...

यह सच है:- तुमने जो दिया दान दान वह, हिन्दी के हित का अभिमान वह, जनता का जन-ताका ज्ञान वह,...

फूले फूल सुरभि-व्याकुल अलि गूँज रहे हैं चारों ओर जगतीतल में सकल देवता भरते शशिमृदु-हँसी-हिलोर।...

धीरे धीरे हँसकर आईं प्राणों की जर्जर परछाईं। छाया-पथ घनतर से घनतम, होता जो गया पंक-कर्दम,...

नयन नहाये जब से उसकी छबि में रूप बहाये। साथ छुटा स्वजनों की, पाँख फिर गई,...

चलीं निशि में तुम आई प्रात; नवल वीक्षण, नवकर सम्पात, नूपुर के निक्वण कूजे खग, हिले हीरकाभरण, पुष्प मग,...

नव वसन्त करता था वन की सैर जब किसी क्षीण-कटि तटिनी के तट तरुणी ने रक्खे थे अपने पैर। नहाने को सरि वह आई थी,...

हार तुमसे बनी है जय, जीत की जो चक्षु में क्षय। विषम कम्पन बली के उर, सदुन्मोचन छली के पुर,...

गिरते जीवन को उठा दिया, तुमने कितना धन लुटा दिया! सूखी आशा की विषम फांस, खोलकर साफ की गांस-गांस,...

जन-जन के जीवन के सुन्दर हे चरणों पर भाव-वरण भर दूँ तन-मन-धन न्योछावर कर।...

काम के छवि-धाम, शमन प्रशमन राम! सिन्धुरा के सीस सिन्दूर, जगदीश,...

मैं जीर्ण-साज बहु छिद्र आज, तुम सुदल सुरंग सुवास सुमन, मैं हूँ केवल पतदल--आसन, तुम सहज बिराजे महाराज।...

छोड़ दो, न छेड़ो टेढ़े, कब बसे तुम्हारे खेड़े? यह राह तुम्हारी कब की जिसको समझे हम सब की?...

पतित पावनी, गंगे! निर्मल-जल-कल-रंगे! कनकाचल-विमल-धुली, शत-जनपद-प्रगद-खुली,...

रश्मि, नभ-नील-पर, सतत शत रूप धर, विश्व-छवि में उतर, लघु-कर करो चयन !...

घन आये घनश्याम न आये। जल बरसे आँसू दृग छाये। पड़े हिंडोले, धड़का आया, बढ़ी पैंग, घबराई काया,...

कौन गुमान करो जिन्दगी का? जो कुछ है कुल मान उन्हीं का। बाँधे हुए घर-बार तुम्हारे, माथे है नील का टीका,...

नूपुर के सुर मन्द रहे, जब न चरण स्वच्छन्द रहे। उतरी नभ से निर्मल राका, पहले जब तुमने हँस ताका...

जला है जीवन यह आतप में दीर्घकाल; सूखी भूमि, सूखे तरु, सूखे सिक्त आलबाल;...

आज नहीं है मुझे और कुछ चाह, अर्धविकव इस हॄदय-कमल में आ तू प्रिये, छोड़ कर बन्धनमय छ्न्दों की छोटी राह! गजगामिनि, वह पथ तेरा संकीर्ण,...

गाता हूँ गीत मैं तुम्हें ही सुनाने को; भले और बुरे की, लोकनिन्दा यश-कथा की नहीं परवाह मुझे;...

तव भक्त भ्रमरों को हृदय में लिए वह शतदल विमल आनन्द-पुलकित लोटता नव चूम कोमल चरणतल। बह रही है सरस तान-तरंगिनी, बज रही है वीणा तुम्हारी संगिनी,...

भज भिखारी, विश्वभरणा, सदा अशरण-शरण-शरणा। मार्ग हैं, पर नहीं आश्रय; चलन है, पर निर्दलन-भय;...

धूलि में तुम मुझे भर दो। धूलि-धूसर जो हुए पर उन्हीं के वर वरण कर दो दूर हो अभिमान, संशय,...

हरिण-नयन हरि ने छीने हैं। पावन रँग रग-रग भीने हैं। जिते न-चहती माया महती, बनी भावना सहती-सहती,...

पार संसार के, विश्व के हार के, दुरित संभार के नाश हो क्षार के।...

अरघान की फैल, मैली हुई मालिनी की मृदुल शैल। लाले पड़े हैं, हजारों जवानों कि जानों लड़े हैं;...

नव जीवन की बीन बजाई। प्रात रागिनी क्षीण बजाई। घर-घर नये-नये मुख, नव कर, भरकर नये-नये गुंजित स्वर,...

गहन है यह अण्ध कारा; स्वार्थ के अवगुण्ठनों से हुआ है लुण्ठन हमारा । खड़ी है दीवार जड़ की घेरकर,...

दुरित दूर करो नाथ अशरण हूँ, गहो हाथ। हार गया जीवन-रण, छोड़ गये साथी जन,...

भारति, जय, विजयकरे ! कनक-शस्य-कमलधरे ! लंका पदतल शतदल गर्जितोर्मि सागर-जल,...

तन की, मन की, धन की हो तुम। नव जागरण, शयन की हो तुम। काम कामिनी कभी नहीं तुम, सहज स्वामिनी सदा रहीं तुम,...

सरल तार, नवल गान, नव-नव स्वर के वितान। जैसे नव ॠतु, नव कलि, आकुल नव-नव अंजलि,...

दे न गये बचने की साँस, आस ले गये। रह-रहकर मारे पर यौवन के ज्वर के शर...

कुंज-कुंज कोयल बोली है, स्वर की मादकता घोली है। कांपा है घन पल्लव-कानन, गूँजी गुहा श्रवण-उन्मादन,...

रमण मन के, मान के तन! तुम्हीं जग के जीव-जीवन! तुम्हीं में है महामाया, जुड़ी छुटकर विश्वकाया;...

सहज-सहज कर दो; सकलश रस भर दो। ठग ठगकर मन को लूट गये धन को,...

वे कह जो गये कल आने को, सखि, बीत गये कितने कल्पों। खग-पांख-मढी मृग-आँख लगी, अनुराग जगी दुख के तल्पों।...

गरज गरज घन अंधकार में गा अपने संगीत, बन्धु, वे बाधा-बन्ध-विहीन, आखों में नव जीवन की तू अंजन लगा पुनीत, बिखर झर जाने दे प्राचीन।...