यह सच है:- तुमने जो दिया दान दान वह, हिन्दी के हित का अभिमान वह, जनता का जन-ताका ज्ञान वह,...
फूले फूल सुरभि-व्याकुल अलि गूँज रहे हैं चारों ओर जगतीतल में सकल देवता भरते शशिमृदु-हँसी-हिलोर।...
चलीं निशि में तुम आई प्रात; नवल वीक्षण, नवकर सम्पात, नूपुर के निक्वण कूजे खग, हिले हीरकाभरण, पुष्प मग,...
नव वसन्त करता था वन की सैर जब किसी क्षीण-कटि तटिनी के तट तरुणी ने रक्खे थे अपने पैर। नहाने को सरि वह आई थी,...
हार तुमसे बनी है जय, जीत की जो चक्षु में क्षय। विषम कम्पन बली के उर, सदुन्मोचन छली के पुर,...
गिरते जीवन को उठा दिया, तुमने कितना धन लुटा दिया! सूखी आशा की विषम फांस, खोलकर साफ की गांस-गांस,...
मैं जीर्ण-साज बहु छिद्र आज, तुम सुदल सुरंग सुवास सुमन, मैं हूँ केवल पतदल--आसन, तुम सहज बिराजे महाराज।...
घन आये घनश्याम न आये। जल बरसे आँसू दृग छाये। पड़े हिंडोले, धड़का आया, बढ़ी पैंग, घबराई काया,...
कौन गुमान करो जिन्दगी का? जो कुछ है कुल मान उन्हीं का। बाँधे हुए घर-बार तुम्हारे, माथे है नील का टीका,...
नूपुर के सुर मन्द रहे, जब न चरण स्वच्छन्द रहे। उतरी नभ से निर्मल राका, पहले जब तुमने हँस ताका...
आज नहीं है मुझे और कुछ चाह, अर्धविकव इस हॄदय-कमल में आ तू प्रिये, छोड़ कर बन्धनमय छ्न्दों की छोटी राह! गजगामिनि, वह पथ तेरा संकीर्ण,...
गाता हूँ गीत मैं तुम्हें ही सुनाने को; भले और बुरे की, लोकनिन्दा यश-कथा की नहीं परवाह मुझे;...
तव भक्त भ्रमरों को हृदय में लिए वह शतदल विमल आनन्द-पुलकित लोटता नव चूम कोमल चरणतल। बह रही है सरस तान-तरंगिनी, बज रही है वीणा तुम्हारी संगिनी,...
हरिण-नयन हरि ने छीने हैं। पावन रँग रग-रग भीने हैं। जिते न-चहती माया महती, बनी भावना सहती-सहती,...
अरघान की फैल, मैली हुई मालिनी की मृदुल शैल। लाले पड़े हैं, हजारों जवानों कि जानों लड़े हैं;...
नव जीवन की बीन बजाई। प्रात रागिनी क्षीण बजाई। घर-घर नये-नये मुख, नव कर, भरकर नये-नये गुंजित स्वर,...
गहन है यह अण्ध कारा; स्वार्थ के अवगुण्ठनों से हुआ है लुण्ठन हमारा । खड़ी है दीवार जड़ की घेरकर,...
तन की, मन की, धन की हो तुम। नव जागरण, शयन की हो तुम। काम कामिनी कभी नहीं तुम, सहज स्वामिनी सदा रहीं तुम,...
कुंज-कुंज कोयल बोली है, स्वर की मादकता घोली है। कांपा है घन पल्लव-कानन, गूँजी गुहा श्रवण-उन्मादन,...
रमण मन के, मान के तन! तुम्हीं जग के जीव-जीवन! तुम्हीं में है महामाया, जुड़ी छुटकर विश्वकाया;...
वे कह जो गये कल आने को, सखि, बीत गये कितने कल्पों। खग-पांख-मढी मृग-आँख लगी, अनुराग जगी दुख के तल्पों।...
गरज गरज घन अंधकार में गा अपने संगीत, बन्धु, वे बाधा-बन्ध-विहीन, आखों में नव जीवन की तू अंजन लगा पुनीत, बिखर झर जाने दे प्राचीन।...