पार संसार के
पार संसार के, विश्व के हार के, दुरित संभार के नाश हो क्षार के। सविध हो वैतरण, सुकृत कारण-करण, अरण-वारण-वरण, शरण संचार के। तान वह छेड़ दी, सुमन की, पेड़ की, तीन की, डेढ़ की, तार के हार के! वार वनिता विनत, आ गये तथागत, अप्रहत, स्नेह रत, मुक्ति के द्वार के।

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