भज, भिखारी, विश्व-भरणा
भज भिखारी, विश्वभरणा, सदा अशरण-शरण-शरणा। मार्ग हैं, पर नहीं आश्रय; चलन है, पर निर्दलन-भय; सहित-जीवन मरण निश्चय; कह सतत जय-विजय-रणना। पतित को सित हाथ गहकर जो चलाती हैं सुपथ पर, उन्हीं का तू मनन कर कर पकड़ निश्शर-विश्वतरणा। पार पारावार कर तू, मर विभव से, अमर बर तू, रे असुन्दर, सुघर घर तू, एक तेरी तपोवरणा।

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