गिरते जीवन को उठा दिया
गिरते जीवन को उठा दिया, तुमने कितना धन लुटा दिया! सूखी आशा की विषम फांस, खोलकर साफ की गांस-गांस, छन-छन, दिन-दिन, फिर मास-मास, मन की उलझन से छुटा दिया। बैठाला ज्योतिर्मुख करकर, खोली छवि तमस्तोम हरकर, मानस को मानस में भरकर, जन को जगती से खुटा दिया। पंजर के निर्जर के रथ से, सन्तुलिता को इति से, अथ से, बरने को, वारण के पथ से, काले तारे को टुटा दिया।

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