तन की, मन की, धन की हो तुम
तन की, मन की, धन की हो तुम। नव जागरण, शयन की हो तुम। काम कामिनी कभी नहीं तुम, सहज स्वामिनी सदा रहीं तुम, स्वर्ग-दामिनी नदी बहीं तुम, अनयन नयन-नयन की हो तुम। मोह-पटल-मोचन आरोचन, जीवन कभी नहीं जन-शोचन, हास तुम्हारा पाश-विमोचन, मुनि की मान, मनन की हो तुम। गहरे गया, तुम्हें तब पाया, रहीं अन्यथा कायिक छाया, सत्य भाष की केवल माया, मेरे श्रवण वचन की हो तुम।

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