दे न गये बचने की साँस
दे न गये बचने की साँस, आस ले गये। रह-रहकर मारे पर यौवन के ज्वर के शर नव-नव कल-कोमल कर उठे हुए जो न नये। फागुन के खुले फाग गाये जो सिन्धु-राग दल के दल भरमाये पातों से जो न छये। गले-गले मिलने की, कटी हुई सिलने की, पड़ी हुई झिलने की, आ बीती खड़े-खड़े।

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