सरल तार नवल गान
सरल तार, नवल गान, नव-नव स्वर के वितान। जैसे नव ॠतु, नव कलि, आकुल नव-नव अंजलि, गुंजित-अलि-कुसुमावलि, नव-नव-मधु-गन्ध-पान। नव रस के कलश उठे, जैसे फल के, असु के,— नव यौवन के बसु के नव जीवन के प्रदान। उठे उत्स, उत्सुक मन, देखे वह मुक्त गगन, मुक्त धरा, मुक्तानन, मिला दे अदिव्य प्राण।

Read Next