वीणावादिनी
तव भक्त भ्रमरों को हृदय में लिए वह शतदल विमल आनन्द-पुलकित लोटता नव चूम कोमल चरणतल। बह रही है सरस तान-तरंगिनी, बज रही है वीणा तुम्हारी संगिनी, अयि मधुरवादिनि, सदा तुम रागिनी-अनुरागिनी, भर अमृत-धारा आज कर दो प्रेम-विह्वल हृदयदल, आनन्द-पुलकित हों सकल तव चूम कोमल चरणतल! स्वर हिलोरं ले रहा आकाश में, काँपती है वायु स्वर-उच्छ्वास में, ताल-मात्राएँ दिखातीं भंग, नव रति रंग भी मूर्च्छित हुए से मूर्च्छना करती उठाकर प्रेम-छल, आनन्द-पुलकित हों सकल तव चूम कोमल चरणतल!

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