छोड़ दो, न छेड़ो टेढ़े,
छोड़ दो, न छेड़ो टेढ़े, कब बसे तुम्हारे खेड़े? यह राह तुम्हारी कब की जिसको समझे हम सब की? गम खा जाते हैं अब की, तुम ख़बर करो इस ढब की, हम नहीं हाथ के पेड़े। सब जन आते जाते हैं, हँसते हैं, बतलाते हैं, आपस में इठलाते हैं, अपना मन बहलाते हैं, तुमको खेने हैं बेड़े।

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