कौन गुमान करो जिन्दगी का?
कौन गुमान करो जिन्दगी का? जो कुछ है कुल मान उन्हीं का। बाँधे हुए घर-बार तुम्हारे, माथे है नील का टीका, दाग़-दाग़ कुल अंग स्याह हैं रंग रहा है फीका-- तुम्हारा कोई न जी का। एक भरोसा, एक सहारा, वारा-न्यारा बन्दगी का, ज्ञान गठा कब, मान हुआ कब, ध्यान गया जब पी का, बना कब आन किसीका?

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