जन-जन के जीवन के सुन्दर
जन-जन के जीवन के सुन्दर हे चरणों पर भाव-वरण भर दूँ तन-मन-धन न्योछावर कर। दाग़-दग़ा की आग लगा दी तुमने जो जन-जन की, भड़की; करूँ आरती मैं जल-जल कर। गीत जगा जो गले लगा लो, हुआ ग़ैर जो, सहज सगा हो, करे पार जो है अति दुस्तर।

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