नूपुर के सुर मन्द रहे
नूपुर के सुर मन्द रहे, जब न चरण स्वच्छन्द रहे। उतरी नभ से निर्मल राका, पहले जब तुमने हँस ताका बहुविध प्राणों को झंकृत कर बजे छन्द जो बन्द रहे। नयनों के ही साथ फिरे वे मेरे घेरे नहीं घिरे वे, तुमसे चल तुममें ही पहुँचे जितने रस आनन्द रहे।

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