अरघान की फैल,
मैली हुई मालिनी की मृदुल शैल।
लाले पड़े हैं,
हजारों जवानों कि जानों लड़े हैं;
कहीं चोट खाई कि कोसों बढ़े हैं,
उड़ी आसमाँ को खुरीधूल की गैल-
अरघान की फैल।
काटे कटी काटते ही रहे तो,
पड़े उम्रभर पाटते ही रहे तो,
अधूरी कथाओं,
करारी व्यथाओं,
फिरा दीं जबानें कि ज्यों बाल में बैल।