दुरित दूर करो नाथ
दुरित दूर करो नाथ अशरण हूँ, गहो हाथ। हार गया जीवन-रण, छोड़ गये साथी जन, एकाकी, नैश-क्षण, कण्टक-पथ, विगत पाथ। देखा है, प्रात किरण फूटी है मनोरमण, कहा, तुम्ही को अशरण- शरण, एक तुम्हीं साथ। जब तक शत मोह जाल घेर रहे हैं कराल-- जीवन के विपुल व्याल, मुक्त करो, विश्वगाथ!

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