दुख भी सुख का बन्धु बना पहले की बदली रचना। परम प्रेयसी आज श्रेयसी, भीति अचानक गीति गेय की,...
वीणानिन्दित वाणी बोल! संशय-अन्धकामय पथ पर भूला प्रियतम तेरा-- सुधाकर-विमल धवल मुख खोल! प्रिये, आकाश प्रकाशित करके,...
सिन्धु के अश्रु! धारा के खिन्न दिवस के दाह! विदाई के अनिमेष नयन! मौन उर में चिह्नित कर चाह...
सीधी राह मुझे चलने दो। अपने ही जीवन फलने दो। जो उत्पात, घात आए हैं, और निम्न मुझको लाए हैं,...
तुम्हारी छांह है, छल है, तुम्हारे बाल हैं, बल है। दृगों में ज्योति है, शय है, हृदय में स्पन्द है, भय है।...
तुम जो सुथरे पथ उतरे हो, सुमन खिले, पराग बिखरे, ओ! ज्योतिश्छाय केश-मुख वाली, तरुणी की सकरुण कलिका ली,...
क्या यह वही देश है— भीमार्जुन आदि का कीर्ति क्षेत्र, चिरकुमार भीष्म की पताका ब्रह्माचर्य-दीप्त उड़ती है आज भी जहाँ के वायुमण्डल में...
खँड़हर! खड़े हो तुम आज भी? अदभुत अज्ञात उस पुरातन के मलिन साज! विस्मृति की नींद से जगाते हो क्यों हमें-- करुणाकर, करुणामय गीत सदा गाते हुए?...
जग का एक देखा तार । कंठ अगणित, देह सप्तक, मधुर-स्वर झंकार । बहु सुमन, बहुरंग, निर्मित एक सुन्दर हार;...
हारता है मेरा मन विश्व के समर में जब कलरव में मौन ज्यों शान्ति के लिए, त्यों ही हार बन रही हूँ प्रिय, गले की तुम्हारी मैं,...
उन चरणों में मुझे दो शरण। इस जीवन को करो हे मरण। बोलूँ अल्प, न करूँ जल्पना, सत्य रहे, मिट जाय कल्पना,...
कनक कसौटी पर कढ़ आया स्वच्छ सलिल पर कर की छाया। मान गये जैसे सुनकर जन मन के मान अवश्रित प्रवचन,...
कठिन यह संसार, कैसे विनिस्तार? ऊर्मि का पाथार कैसे करे पार? अयुत भंगुर तरंगों टूटता सिन्धु, तुमुल-जल-बल-भार, क्षार-तल, कुल बिन्दु,...
केशर की, कलि की पिचकारी पात-पात की गात संवारी। राग-पराग-कपोल किये हैं, लाल-गुलाल अमोल लिये हैं,...
प्रात तव द्वार पर, आया, जननि, नैश अन्ध पथ पार कर । लगे जो उपल पद, हुए उत्पल ज्ञात, कंटक चुभे जागरण बने अवदात,...
वर्ष का प्रथम पृथ्वी के उठे उरोज मंजु पर्वत निरुपम किसलयों बँधे, पिक-भ्रमर-गुंज भर मुखर प्राण रच रहे सधे...
आज बह गई मेरी वह व्याकुल संगीत-हिलोर किस दिगंत की ओर? शिथिल हो गई वेणी मेरी, शिथिल लाज की ग्रन्थि,...
समझ नहीं सके तुम, हारे हुए झुके तभी नयन तुम्हारे, प्रिय। भरा उल्लास था हॄदय में मेरे जब,-- काँपा था वक्ष,...
ज्येष्ठ! क्रूरता-कर्कशता के ज्येष्ठ! सृष्टि के आदि! वर्ष के उज्जवल प्रथम प्रकाश! अन्त! सृष्टि के जीवन के हे अन्त! विश्व के व्याधि! चराचर दे हे निर्दय त्रास!...
अनगिनित आ गए शरण में जन, जननि,-- सुरभि-सुमनावली खुली, मधुऋतु अवनि ! स्नेह से पंक-उर हुए पंकज मधुर,...
किरणों की परियाँ मुसका दों। ज्योति हरी छाया पर छा दी। परिचय के उर गूंजे नूपुर, थिर चितवन से चिर मिलनातुर,...
ऊर्ध्व चन्द्र, अधर चन्द्र, माझ मान मेघ मन्द्र। क्षण-क्षण विद्युत प्रकाश, गुरु गर्जन मधुर भास,...
अस्ताचल रवि, जल छलछल-छवि, स्तब्ध विश्वकवि, जीवन उन्मन; मंद पवन बहती सुधि रह-रह परिमल की कह कथा पुरातन ।...
वासन्ती की गोद में तरुण, सोहता स्वस्थ-मुख बालारुण; चुम्बित, सस्मित, कुंचित, कोमल तरुणियों सदृश किरणें चंचल;...
विपद-भय-निवारण करेगा वही सुन, उसी का ज्ञान है, ध्यान है मान-गुन। वेग चल, वेग चल, आयु घटती हुई, प्रमुद-पद की सुखद वायु कटती हुई;...
बन जाय भले शुक की उक से, सुख की दुख से अवनी न बनी। रुक जाय चली गति जो जग की, जन से जन-जीवन की न ठनी।...