विपद-भय-निवारण करेगा वही सुन,
उसी का ज्ञान है, ध्यान है मान-गुन।
वेग चल, वेग चल, आयु घटती हुई,
प्रमुद-पद की सुखद वायु कटती हुई;
जल्पना छोड़ दे जोड़ दे ललित धुन।
सलिल में मीन हैं मग्न, मनु अनिल में
सीखने के लिये ज्ञान है अखिल में,
विमल अनवद्य की भावना सद्य चुन।
अन्यथा सकल आराधना शून्य है,
मृत्तिका भाप है, पाप भी पूण्य है,
भेद की आग में व्यर्थ अब तो न भुन।