कठिन यह संसार, कैसे विनिस्तार
कठिन यह संसार, कैसे विनिस्तार? ऊर्मि का पाथार कैसे करे पार? अयुत भंगुर तरंगों टूटता सिन्धु, तुमुल-जल-बल-भार, क्षार-तल, कुल बिन्दु, तट-विटप लुप्त, केवल सलिल-संहार। ॠतु-वलय सकल शय नाचते हैं यहाँ, देख पड़ता नहीं, आँचते हैं यहाँ, सत्य में झूठ, कुहरा-भरा संभार।

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