प्रात तब द्वार पर
प्रात तव द्वार पर, आया, जननि, नैश अन्ध पथ पार कर । लगे जो उपल पद, हुए उत्पल ज्ञात, कंटक चुभे जागरण बने अवदात, स्मृति में रहा पार करता हुआ रात, अवसन्न भी हूँ प्रसन्न मैं प्राप्तवर-- प्रात तव द्वार पर। समझा क्या वे सकेंगे भीरु मलिन-मन, निशाचर तेजहत रहे जो वन्य जन, धन्य जीवन कहाँ, --मातः, प्रभात-धन प्राप्ति को बढ़ें जो गहें तव पद अमर-- प्रात तव द्वार पर।

Read Next