सखि, वसन्त आया
सखि वसन्त आया। भरा हर्ष वन के मन, नवोत्कर्ष छाया। किसलय-वसना नव-वय-लतिका मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका, मधुप-वृन्द बन्दी-- पिक-स्वर नभ सरसाया। लता-मुकुल-हार-गंध-भार भर, बही पवन बंद मंद मंदतर, जागी नयनों में वन- यौवन की माया। आवृत सरसी-उर-सरसिज उठे, केशर के केश कली के छुटे, स्वर्ण-शस्य-अंचल पृथ्वी का लहराया।

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