जग का एक देखा तार
जग का एक देखा तार । कंठ अगणित, देह सप्तक, मधुर-स्वर झंकार । बहु सुमन, बहुरंग, निर्मित एक सुन्दर हार; एक ही कर से गुँथा, उर एक शोभा-भार । गंध-शत अरविंद-नंदन विश्व-वंदन-सार, अखिल-उर-रंजन निरंजन एक अनिल उदार । सतत सत्य, अनादि निर्मल सकल सुख-विस्तार; अयुत अधरों में सुसिंचित एक किंचित प्यार । तत्त्व-नभ-तम में सकल-भ्रम-शेष, श्रम-निस्तार, अलक-मंदल में यथा मुख-चन्द्र निरलंकार ।

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