दुख भी सुख का बन्धु बना
दुख भी सुख का बन्धु बना पहले की बदली रचना। परम प्रेयसी आज श्रेयसी, भीति अचानक गीति गेय की, हेय हुई जो उपादेय थी, कठिन, कमल-कोमल वचना। ऊँचा स्तर नीचे आया है, तरु के तल फैली छाया है, ऊपर उपवन फल लाया है, छल से छुट कर मन अपना।

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