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गरज-बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला चिड़ियों को दाने बच्चों को गुड़-धानी दे मौला दो और दो का जोड़ हमेशा चार कहाँ होता है सोच समझ वालों को थोड़ी नादानी दे मौला...

ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री 'ग़ालिब' हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे...

बन जाय भले शुक की उक से, सुख की दुख से अवनी न बनी। रुक जाय चली गति जो जग की, जन से जन-जीवन की न ठनी।...

कुछ समय तक स्तब्ध हो रहे राम छवि में निमग्न, फिर खोले पलक कमल ज्योतिर्दल ध्यान-लग्न। हैं देख रहे मन्त्री, सेनापति, वीरासन बैठे उमड़ते हुए, राघव का स्मित आनन।...

हवा ठंडी- बहुत ठंडी मारती है चपत मुझको...

तोड़ो मृदुल वल्लकी के ये सिसक-सिसक रोते-से तार, दूर करो संगीत-कुंज से कृत्रिम फूलों का शृंगार! भूलो कोमल, स्फीत स्नेह स्वर, भूलो क्रीडा का व्यापार, हृदय-पटल से आज मिटा दो स्मृतियों का अभिनव संसार!...

विवश मैं तो वीणा का तार। जहाँ उठी अंगुली तुम्हारी, मुझे गूँजना है लाचारी, मुझको कम्पन दिया, तुम्हीं ने,...

फड़ नुक़्ता छोड़ हिसाबां नूं, कर दूर कुफ़र दीआं बाबां नूं, लाह दोज़ख गोर अज़ाबां नूं, कर साफ दिले दीआं ख़ाबां नूं, गल्ल एसे घर विच ढुक्कदी ए इक नुक़्ते विच गल्ल मुक्कदी ए । ऐवें मत्था ज़मीं घसाईदा, लंमा पा महराब दिखाई दा,...

इहनां सुक्यां फुल्लां विच बास नहीं, परदेस गयां दी कोई आस नहीं, जेहड़े साईं साजन साडे पास नहीं, ना जीवां महाराज, मैं तेरे बिन ना जीवां ।...

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तिरे ऊपर निसार ले तिरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है...

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मिली है दुख़्तर-ए-रज़ लड़-झगड़ के क़ाज़ी से जिहाद कर के जो औरत मिले हराम नहीं...

हम-सर-ए-ज़ुल्फ़ क़द-ए-हूर-ए-शिमाइल ठहरा लाम का ख़ूब अलिफ़ मद्द-ए-मुक़ाबिल ठहरा दीदा-ए-तर से जो दामन में गिरा दिल ठहरा बहते बहते ये सफ़ीना लब-ए-साहिल ठहरा...

गुज़र को है बहुत औक़ात थोड़ी कि है ये तूल क़िस्सा रात थोड़ी जो मय ज़ाहिद ने माँगी मस्त बोले बहुत या क़िबला-ए-हाजात थोड़ी...

हैं न ज़िंदों में न मुर्दों में कमर के आशिक़ न इधर के हैं इलाही न उधर के आशिक़ है वही आँख जो मुश्ताक़ तिरे दीद की हो कान वो हैं जो रहें तेरी ख़बर के आशिक़...

फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझ को रात भर रक्खा कभी तकिया इधर रक्खा कभी तकिया इधर रक्खा शिकस्त-ए-दिल का बाक़ी हम ने ग़ुर्बत में असर रखा लिखा अहल-ए-वतन को ख़त तो इक गोशा कतर रक्खा...

हम जो मस्त-ए-शराब होते हैं ज़र्रे से आफ़्ताब होते हैं है ख़राबात सोहबत-ए-वाइज़ लोग नाहक़ ख़राब होते हैं...

है ख़मोशी ज़ुल्म-ए-चर्ख़-ए-देव-पैकर का जवाब आदमी होता तो हम देते बराबर का जवाब जो बगूला दश्त-ए-ग़ुर्बत में उठा समझा ये मैं करती है तामीर दीवानी मिरे घर का जवाब...

उस की हसरत है जिसे दिल से मिटा भी न सकूँ ढूँडने उस को चला हूँ जिसे पा भी न सकूँ डाल के ख़ाक मेरे ख़ून पे क़ातिल ने कहा कुछ ये मेहंदी नहीं मेरी कि छुपा भी न सकूँ...

गले में हाथ थे शब उस परी से राहें थीं सहर हुई तो वो आँखें न वो निगाहें थीं निकल के चेहरे पे मैदान साफ़ ख़त ने किया कभी ये शहर था ऐसा कि बंद राहें थीं...

चुप भी हो बक रहा है क्या वाइज़ मग़्ज़ रिंदों का खा गया वाइज़ तेरे कहने से रिंद जाएँगे ये तो है ख़ाना-ए-ख़ुदा वाइज़...