किरणों की परियां मुसका दीं।
किरणों की परियाँ मुसका दों। ज्योति हरी छाया पर छा दी। परिचय के उर गूंजे नूपुर, थिर चितवन से चिर मिलनातुर, विष की शत वाणी से विच्छुर, गांस गांस की फांस हिला दीं। प्राणों की अंजलि से उड़कर, छा छा कर ज्योर्तिमय अम्बर, बादल से ॠतु समय बदलकर, बूंदो से वेदना बिछा दीं। पादप-पादप को चेतनतर, कर के फहराया केतनवर, ऐसा गाया गीत अनश्वर, कण के तन की प्यास बुझा दीं।

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