जननी मोह की रजनी
जननी मोह की रजनी पार कर गई अवनी। तोरण-तोरण साजे, मंगल-बाजे बाजे, जन-गण-जीवन राजे, महिलाएँ बनीठनीं। साड़ी के खिले मोर, रेशम के हिले छोर, शिंजित हैं बोर-बोर, चमकी है कनी-कनी। क्षिति पर हैं लौह-यान, गगन विकल हैं विमान, थल पर है उथल-पुथल, जल पर तैरी तरणी।

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