बादल राग / भाग ५
निरंजन बने नयन अंजन! कभी चपल गति, अस्थिर मति, जल-कलकल तरल प्रवाह, वह उत्थान-पतन-हत अविरत संसृति-गत उत्साह, कभी दुख -दाह कभी जलनिधि-जल विपुल अथाह-- कभी क्रीड़ारत सात प्रभंजन-- बने नयन-अंजन! कभी किरण-कर पकड़-पकड़कर चढ़ते हो तुम मुक्त गगन पर, झलमल ज्योति अयुत-कर-किंकर, सीस झुकाते तुम्हे तिमिरहर-- अहे कार्य से गत कारण पर! निराकार, हैं तीनों मिले भुवन-- बने नयन-अंजन! आज श्याम-घन श्याम छवि मुक्त-कण्ठ है तुम्हे देख कवि, अहो कुसुम-कोमल कठोर-पवि! शत-सहस्र-नक्षत्र-चन्द्र रवि संस्तुत नयन मनोरंजन! बने नयन अंजन!

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