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यह वासुदेव प्याला भरते ही कृष्ण का चरण-स्पर्श पा रीत जाता है और फिर भरता है...

दीपक हूँ, मस्तक पर मेरे अग्निशिखा है नाच रही- यही सोच समझा था शायद आदर मेरा करें सभी। किन्तु जल गया प्राण-सूत्र जब स्नेह नि:शेष हुआ- बुझी ज्योति मेरे जीवन की शव से उठने लगा धुआँ...

प्रिय, मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ! वह गया जग मुग्ध सरि-सा मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ! तुम विमुख हो, किन्तु मैं ने कब कहा उन्मुख रहो तुम? साधना है सहसनयना-बस, कहीं सम्मुख रहो तुम!...

सागर और धरा मिलते थे जहाँ सन्धि-रेख पर मैं बैठा था। नहीं जानता...

जीना है बन सीने का साँप हम ने भी सोचा था कि अच्छी ची ज है स्वराज हम ने भी सोचा था कि हमारा सिर ऊँचा होगा ऐक्य में। जानते हैं पर आज...

रो उठेगी जाग कर जब वेदना, बहेंगी लूहें विरह की उन्मना, -उमड़ क्या लाया करेगा हृदय में सर्वदा विश्वास का वारिद घना?...

खेतों में मद और मूसलों की दोहरी मार से त्रस्त-ध्वस्त बिछे थे यादव-वीर। सूर्य अस्त, चन्द्र अस्त,...

मैं मिट्टी का दीपक, मैं ही हूँ उस में जलने का तेल, मैं ही हूँ दीपक की बत्ती, कैसा है यह विधि का खेल! तुम हो दीप-शिखा, मेरे उर का अमृत पी जाती हो- जला-जला कर मुझ को ही अपनी तुम दीप्ति बढ़ाती हो।...

एक का अनकहा संकल्प था कि मुझे मार-मार कर दुम्बा बना देगा दूसरे की ऐलानिया डींग थी कि मुझे बना लेगा मार-मार कर हकीम :...

एक अहंकार है जिस में मैं रहता हूँ जिस में (और जिसे!) मैं कहता हूँ कि यह मेरा अनुभव है जो मेरा है, मेरा भोगा है, मेरा जिया है :...

ओ अप्रतिम उरस्थ देवता मेरे! मेरा जीवन तेरी वेदी, अंजलि बेसुध प्राणों ने दी; पीड़ा से तीखे, हृद्भेदी भावों से जलते दीपों की सदा आरती तुझ को घेरे!...

चाय पीते हुए मैं अपने पिता के बारे में सोच रहा हूँ। आपने कभी चाय पीते हुए...

दोनों पंख काट कर मेरे- मुझ को ला फेंका निर्मोही तूने किस घनघोर अँधेरे! थे अभ्यासी प्राण अनन्त गगन में विचरण करने के- गीतों में नभ, नभ में निज निर्बाध गीत बस भरने के।...

'चक्रवाकवधुके! आमन्त्रयस्व सहचरं। उपस्थिता रजनी।' गोधूली की अरुणाली अब बढ़ते-बढ़ते हुई घनी, वधुके, जाने दो सहचर को अब है उपस्थिता रजनी! दिन में था सुख-साथ, किन्तु अब अवधि हो गयी उस की शेष-...

छन्द है यह फूल, पत्ती प्रास। सभी कुछ में है नियम की साँस। कौन-सा वह अर्थ जिसकी अलंकृति कर नहीं सकती यही पैरों तले की घास?...

घिर रही है साँझ हो रहा अब समय घर कर ले उदासी। तौल अपने पंख, सारस दूर के...

रात सावन की कोयल भी बोली पपीहा भी बोला मैं ने नहीं सुनी...

झर गयी है दुनिया मैं हूँ झर गया मैं तुम हो झर गये तुम प्रश्न है झर गया है प्रश्न युद्ध है...

दिया सो दिया उस का गर्व क्या, उसे याद भी फिर किया नहीं। पर अब क्या करूँ कि पास और कुछ बचा नहीं ...

आन-बान मोर-पेंच, धनुष-बाण, यानी वीर-सूरमा भी कभी रहा होगा।...

इस भीड़ में व्याकुल भाव से खोजता हूँ उन्हें मेरे माता-पिता, मेरे परिवार-जन, मेरे बच्चे मेरे बच्चों की माँ। एक एक चेहरे में झाँकता हूँ मैं...

इनसान है कि जनमता है और विरोध के वातावरण में आ गिरता है: उस की पहली साँस संघर्ष का पैंतरा है उस की पहली चीख़ एक युद्ध का नारा है...

हरे-भरे हैं खेत मगर खलिहान नहीं: बहुत महतो का मान- मगर दो मुट्ठी धान नहीं।...

लाल होके झलकेगा भोर का आलोक- उर का रहस्य ओठ सकेंगे न रोक। प्यार की नीहार-बूँद मूक झर जाएगी! इसी बीच किरण मर जाएगी!...

धड़कन धड़कन धड़कन— दाईं, बाईं, कौन सी आँख की फड़कन— मीठी कड़वी तीखी सीठी कसक-किरकिरी किन यादों की रड़कन? ...

घन-गर्जन सुन नाचे मत्त मयूर- प्रियतम! तुम हो मुझ से कितनी दूर! 'कदली, कदम, पिकाकुल कल-सरि-कूल'- निर्मम! कभी सकूँगी तुम को भूल?...

हाँ, इसे मैं छू सकता हूँ-उस की लिखावट को : उस को मैं छू नहीं सकता। वह लिख कर चला गया है। यहाँ, पुस्तकालय के इस तिजोरी-बन्द धुँधले सन्नाटे में मैं उस की लिपि की छुअन से रोमांचित हो सकता हूँ ...

तुम्हारी पलकों का कँपना । तनिक-सा चमक खुलना, फिर झँपना । तुम्हारी पलकों का कँपना । मानो दीखा तुम्हें किसी कली के...

नहीं, ये मेरे देश की आँखें नहीं हैं पुते गालों के ऊपर नकली भवों के नीचे छाया प्यार के छलावे बिछाती...

आ, तू आ, हाँ, आ, मेरे पैरों की छाप-छाप पर रखता पैर, मिटाता उसे, मुझे मुँह भर-भर गाली देता- आ, तू आ।...

किसी का सत्य था, मैंने संदर्भ में जोड़ दिया । कोई मधुकोष काट लाया था, मैंने निचोड़ लिया ।...

मुड़ी डगर मैं ठिठक गया वन-झरने की धार साल के पत्ते पर से ...

जो राज करें उन्हें गुमान भी न हो कि उनके अधिकार पर किसी को शक है, और जिन्हें मुक्त जीना चाहिए उन्हें अपनी कारा में इसकी ख़बर ही न हो...

मुझ में यह सामर्थ्य नहीं है मैं कविता कर पाऊँ, या कूँची में रंगों ही का स्वर्ण-वितान बनाऊँ । साधन इतने नहीं कि पत्थर के प्रासाद खड़े कर- तेरा, अपना और प्यार का नाम अमर कर जाऊँ।...

पाश्र्व गिरि का नम्र, चीड़ों में डगर चढ़ती उमंगों-सी बिछी पैरों में नदी ज्यों दर्द की रेखा विहग-शिशु मौन नीड़ों में...

तनिक ठहरूँ। चाँद उग आए, तभी जाऊँगा वहाँ नीचे कसमसाते रुद्ध सागर के किनारे। चाँद उग आए। न उस की बुझी फीकी चाँदनी में दिखें शायद वे दहकते लाल गुच्छ बुरूँस के जो...

इतराया यह और ज्वार का क्वाँर की बयार चली, शशि गगन पार हँसे न हँसे-- शेफ़ाली आँसू ढार चली !...

बद्ध! ओ जग की निर्बलते! मैं ने कब कुछ माँगा तुझ से। आज शक्तियाँ मेरी ही फिर विमुख हुईं क्यों मुझ से? मेरा साहस ही परिभव में है मेरा प्रतिद्वन्द्वी-...

ये मेघ साहसिक सैलानी! ये तरल वाष्प से लदे हुए द्रुत साँसों से लालसा भरे ये ढीठ समीरण के झोंके ...

अब देखिए न मेरी कारगुज़ारी कि मैं मँगनी के घोड़े पर सवारी कर ठाकुर साहब के लिए उन की रियाया से लगान...