जीना है बन सीने का साँप
जीना है बन सीने का साँप हम ने भी सोचा था कि अच्छी ची ज है स्वराज हम ने भी सोचा था कि हमारा सिर ऊँचा होगा ऐक्य में। जानते हैं पर आज अपने ही बल के अपने ही छल के अपने ही कौशल के अपनी समस्त सभ्यता के सारे संचित प्रपंच के सहारे जीना है हमें तो, बन सीने का साँप उस अपने समाज के जो हमारा एक मात्र अक्षन्तव्य शत्रु है क्यों कि हम आज हो के मोहताज उस के भिखारी शरणार्थी हैं।

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