इसी भीड़ में खोजता हूँ
इस भीड़ में व्याकुल भाव से खोजता हूँ उन्हें मेरे माता-पिता, मेरे परिवार-जन, मेरे बच्चे मेरे बच्चों की माँ। एक एक चेहरे में झाँकता हूँ मैं और देखता हूँ केवल आँखों के कोटरों में भरा हुआ दुःख बेकली, तड़पन, छटपटाती खोज खोजता हूँ अपनों को : पाता हूँ अपने ही प्रतिरूप। जब तक नहीं पा लूँगा अपने से इतर अपने को कैसे होगी मुझे अपनी भी पहचान?

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